खयाली पुलाव / आभा पूर्वे
पंचतंत्रोॅ रोॅ कथा सुनोॅ
ज्ञान बीया के बुनोॅ-बुनोॅ
कहीं रहै एक पंडी जी
सोचै दिन भर की-की-की
एक दिन लेलकै घैलोॅ एक
मन में करी केॅ एक्के टेक
यै में चिकसोॅ जोगना छै
आगू सुख केॅ भोगना छै
ई सोची केॅ रोज जुटाय
चिकसोॅ वै में देलेॅ जाय
आरो मन में सोचै ई
”नै ऐलोॅ छै भले अभी
ऊ अकाल तेॅ आन्है छै
दोॅर अन्न के बढ़न्है छै
तखनी हम्में मँहगोॅ दर में
बेचवै चिकसोॅ राखलोॅ घर में
चिकसोॅ बिकी केॅ ऐतै धोॅन
गदगद होतै तखनी मोॅन
वही धनोॅ सें हम्में एक
किनवै बकरी, वहीं अनेक
देतै पठरू-पाठी भी
भले अंकिंचन छियै अभी
कल ऊ बेची पाठा-पाठी
लेवै गैया हट्ठी-कट्ठी
गैय्यां अगर बियैती बाछी
बेचवेॅ ओकरौ नाँची नाँची
ओकरो सें जे ऐतै धोॅन
देखतै दुनियां, देखतै जोॅन
आरो हम्में वही धनोॅ सें
किनवै एक ठो भैंस मनोॅ सें
भैंस बियैतै पाड़ा-पाड़ी
बेची वहू भी लेवै घोड़
घोड़ियों सें जे होतै बच्चा
ओकरो बेची पुरबै इच्छा
किनवै एक ठो घोॅर बड़ोॅ
आय कत्तो ई भाग अड़ोॅ
घोॅर जेन्है केॅ कीनी लेवै
हम्में आपनोॅ व्याह रचैवै
हमरौ पूत परापत होतै
भोज-भात के देवै नेतोॅ
घुड़कलोॅ-घुड़कलोॅ ऐतै पूत
जैंठा इक घोड़ा मजबूत
ई देखी केॅ कहवै जाय
कहाँ छोॅ बुतरू केरी माय
नै ऐती तेॅ हम्मी जाय
लेवै पूत केॅ गोद उठाय
एतनै टा की होतै बात
घोड़ा के देवै कसलोॅ लात“
ई सोची केॅ होने गोड़
दैइये देलकेॅ ताबड-तोड़
मतुर वहाँ तेॅ छेलै कुछ
घैलोॅ भसकी गेलै मुच
अजब खियाली पुलाव के फौॅल
पंडित जी केॅ मिलै नै कोॅल।