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बाढ़ / शरद कोकास
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:37, 1 जुलाई 2016 का अवतरण
बारिश अच्छी लगती है
बस फुहारों तक
बादल बूँद और हवाएँ
कपड़ों का कलफ़ बिगाड़ने का
दुस्साहस न करें
मौसम का कोई टुकड़ा
कीचड़-सने पाँव लेकर
कालीन रौंदने लगे
तो छत के ऊपर
आसमान में
बादलों के लिए आप
प्रवेश–निषेध का बोर्ड लगा देंगे
आकाश तक छाई
हृदय की घनीभूत पीड़ा को लेकर
कविता लिखने वाले
ख़ाक लिखेंगे कविता
टपकते झोपड़े में
घुटनों तक पानी में बैठकर
आनेवाली बाढ़ में
अलग-थलग रह जाएँगे
सारे के सारे बिम्ब
बच्चे, पेड़ , चिड़िया
सभी अपनी जान बचाने की फ़िक्र में
कैसे याद आ सकेगी
माटी की सोंधी गन्ध
लाशों की सड़ांध में
फ़ोटोग्राफ़र
कैमरे की आँख से देखकर
समीक्षक की भाषा में कहता है
पानी एक इंच और बढ़ जाता
तो क्या ख़ूबसूरत दृश्य होता ।