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स्सौखटिया / पतझड़ / श्रीउमेश

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गामों के भुसखारी भगतें रस्सी बाँटी रहलोॅ छै।
हाथोॅ में पानी लेॅ केॅ साबै कॅे रगड़ी रहलोॅ छै॥
उन्नेॅ मौजी मड़रोॅ के काँखीतर सोॅन दबैलोॅ छै।
हाथोॅ में ढेरा नाचै छै, सुथरी काटलेॅ ऐलोॅ छै॥
यै दोन्हूँ में खूब जमै छै, गप्पोॅ के नैं ओरो छोर।
खैनी खाय केॅ गप्प चलै छै, चाहे खेत चरै छै ढोर॥
हेभेॅ देखोॅ खटिया लेलें ऐलोॅ छोॅत विरंची भाय।
दौङ-गड़ारी या पचगोटिया जे चाहोॅ से घोरलॉे जाय॥
दिन-भर हीनी यहीं रहै छै, खाय-पिवी केॅ आबै छेॅ।
खटिया घोरै छै कखनू यै छाया तर सुस्ताबै छै॥
छाया भेलै दूर आज पतझड़ में दूर बिरंची छै।
दुख के साथी कोय नै होय छै दुनियाँ बड़ा प्रपँचो छै॥