भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
असम्भव लगता / अमित कल्ला
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:12, 10 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमित कल्ला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
असम्भव
लगता
कह पाना
यूँ मानो
अपने आपको
दोहराता हुआ
देह से भिन्न
कोई आस्वादन,
सत्य के
अनुकरण में
क्या इतना कुछ
काफी नहीं,
या फिर
इसका उल्टा
साल दर साल
किसी का
अनुयायी
बने रहना
शायद
असम्भव ही।