भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जन्मभूमि प्रेम / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:46, 18 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

या विधि सुख सुविधा समान सम्पन्न होय मन।
तऊ चाह सों चहत ताहि धौं क्यों अवलोकन॥५४॥

जन्म भूमि वह यदपि, तऊ सम्बन्ध न कछु अब।
अपनो वा सो रह्यो, टूटि सो गयो कबै सब॥५५॥

और औरही ठौर भयौ अब तो गृह अपनो।
तऊ लखत मन किह कारन वाही को सपनो॥५६॥

धवल धाम अभिराम, रम्य थल सकल सुखाकर।
बसन, चहत मन वा सूनो गृह निरखन सादर॥५७॥