भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधर / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:07, 20 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मन्द महा मधु माधुरी कन्द,
नवात न वात की आवै विचार मैं।
ईख न लोची नहीं सरदा,
नहिं जामुन सेब कै तूत हजार मैं॥
चूसि लह्यो रसना घन प्रेम,
जो वा मधुराधर के सुधासार मैं।
सो रस के रस को नहिं लेसहु,
पाइए आम अँगूर अनार मैं॥