भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिना उनवान / एम. कमल
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:16, 24 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एम. कमल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आत्मा खे
साड़े नथो सघिजे
मारे नथो सघिजे
-मगर - आत्मा खे
विकिणी त सघिजे थो।
(सोच जा पाछा, 1989)