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वक़्तु / मोहन गेहाणी

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तो ॻाल्हि पिए कई आहे
वक़्त जे वारीअ ते
क़दमनि जा निशान छॾण जी
पर मां
टाकुईं ऐं सन्ही बर्फ़ ते
हलन्दड़
वारीअ जो वसव्वुरु
कीअं थो करे सघां?