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लठि / महेश नेनवाणी

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जेको भॻवान खे मञे थो
उहो लंगड़ो आहे
ऐं उन खे
बेसाखीअ जी ज़रूरत आहे
जेको भॻवान खे नथो वञे
उहो अन्धो आहे
एंे उन खे
लठि जी ज़रूरत आहे
तव्हां खे
फ़ैसलो सिर्फ़ इहो करिणो आहे
त लठि तव्हां
अन्धा थी करे खणन्दा
या लंगड़ा थी करे!