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मुहबत / अर्जुन ‘शाद’

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काश!
मुहबत खे इन्सान
जिस्म जी मुहबत ताईं महदूद रखे
दिल जी मुहबत
फ़क़त लफ़्ज़ आहिनि
हक़ीक़त जे दाइरे खां परे
हिक ग़ैरफित्री महफिल में दाखि़ल थियण लाइ
पहिंजो पाण खे दावत!

जिस्मु जिस्मु आहे
उन जो छुहाउ
ज़िन्दगीअ जी हरकत आहे
हरकत सचु आहे
बाकी ॿियो सभु कूडु
दिल जी मुहबत
बेकारीअ जो बहानो आहे
ज़िन्दगीअ जो हर घड़ीअ मौत!