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सुभग ताराभरण पहने... / कालिदास
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- प्रिये ! आई शरद लो वर!
सुभग ताराभरण पहने
- मुक्त घन अवरोध से अब
चंन्द्र वदनी, अमल ज्योत्सना
- के दुकूलो में रुचिर सज
मुग्ध प्रमदा यामिनी
- संवर्धित है प्रति दिवस त्वर
- प्रिये ! आई शरद लो वर!