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न रखिजां / लक्ष्मण पुरूस्वानी
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कहिं बि सुपने खे खास न रखिजां
तसवुर ते विश्वास न रखिंजा
चिणिंग जिते चौघार हुजे
भुलिजी बि उते कपाह न रखिंजा
किरन्दनि कुछ माणहुनि खे दिसी
पहिंजो मनु उदास न रखिंजा
रखिणो जे हुजे, तोखे कंघु मथे
पाण खे बुराइनि जो दास न रखिंजा
पाणी बि हुजे खारो जंहिंमें
उन दरियाहु जे वेझो बि न रहिजां
ऊंधाइनि जी कारी अखियुनि में
सोझरे जी तलाश न रखिंजां
ढके बि जिस्म खे, रखे उघाड़ो
तन त एहिड़ो लिबास न रखिजां!!