भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोल्हू / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 17 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवबहादुर सिंह भदौरिया |अनुवादक=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दो
बेलनों का
चक्रावर्तित कोल्हू,
हर ईख पहले पिच् से दबती ह
धार बाँधकर रस
फिर...
खोई,
उफ्!
भट्ठी में झोंकने के लिए
तैयार रहता है-कोई न
कोई।