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उद्यम / मनोज शांडिल्य

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हमर ई मूल्यांकन
भ्रम अछि बंधु
नितांत ओवरएस्टीमेशन अछि अहाँक
हम किन्नहु नहि छी ओ
जे बुझैत छी अहाँ

हम भाषाविद् नहि छी
नहि छी हम कोनो विद्वान्
ने हम कोनो आन्दोलनी
आ ने साहित्यिक पहलमान

हम छी
भीड़ मे सन्हिआयल
एकटा अनचिन्हार चेहरा मात्र

अनबाक अछि प्रयास
अपन आँखि मे दृष्टि
हृदय मे स्पन्दन
जीह पर शब्द
आ मोन मे विश्वास

हम तँ छी मात्र
अपन अकथाइन प्रयोगशालाक
एक अकुलायल जंतु
अमानुष सँ मनुक्ख बनबाक
अंतहीन प्रक्रिया मे
अन्हार सँ इजोत धरिक
एक अनंत यात्रा मे

घोर सुसुप्तावस्था मे
हमर उद्यम अछि
एहि निन्न सँ जगबाक
विधाताक आधारभूत परिकल्पना सनक
मौलिक मनुक्ख बनबाक

अहूँ दिअ ने संग बंधु
एहि भीड़ सँ निकलि क’
बनय एक टटका सङ्गोर
देखी एक नबका भोर
की?


परिक्रमा
अहाँक ई मुस्की
भोरक उगैत सूर्य सन
मृदु, सौम्य, शीतल

तकर बाद
कनी सुसुम सन
गुदगुदाबैत अछि
आ साँझ होइत होइत
तपा दैत अछि
हमर मोनक भूमिकेँ

राति मे
चान सँ प्रतिबिंबित होइत
उतरैत अछि हृदय मे
पावन इजोरिया सन
आ दूधिया इजोत सँ
जगमगा दैत अछि हमर स्वप्नकेँ
अहल भोर धरि

जहिया कहिओ
हमर आत्माक संग एकाकार भ’
नुका रहैत अछि
गँहीर अंतर्मन मेन कतहु
तँ होइत छै अन्हरिया

हमर चित्त
परिक्रमा करैत अछि
अहाँक देदीप्यमान मुस्कीक
नित्तः
सभ दिन
सभ राति…