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धुन्ध / कुमार कृष्ण
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हवा में तैरती हैं नदियाँ
हवा में तैरती हुई नदियों का दूसरा नाम
धुन्ध है
ज़मीन का भागता हुआ रूप है धुन्ध
धुन्ध पहाड़ की रिसती हुई तकलीफ़ है।
हम हर वक़्त
उसके बीच में होकर भी
उसके पास नहीं होते।
वह बिना किसी आहट के
कमरे में चली आती है
मैं अपने आप से कहता हूँ
मौसम बदल रहा है
खूँटियाँ नये कपड़ों के इन्तजार में हैं।
धुन्ध जंगल की पीठ थपथपाती
नंगे पैर ख़ामोश चल रही है
घर से घर सुना रही है
ज़मीन की गीत।