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क्रान्ति / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

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अयी विप्लव-बालिके सरल!
ढाल यौवन - प्याले में गरल
उमड़ पड़ जीवन - पथ पर तू,
विलम मत सुन्दरि! क्षण-भर तू;

मचल झुक-झुककर हँस-हँसकर
अमर उत्साह हृदय भर!

करालिनि! अयी रक्त-वदने!
कालिके! कपट-कलुष-कदने!
क्रोध की ज्वाला फैलाकर
झूमकर पगली! गा-गा कर

सोख ले शीघ्र द्वेष-सागर
अमर-उत्साह हृदय में भर!

सत्य का झंडा फहरादे
उमंगें उर में लहरादे
विजय का दिव्य-मंत्र पढ़कर
खींच ला सूर्यासन सत्वर

सुकवि का राजतिलक देकर
अमर उत्साह हृदय में भर!
28.3.28