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एकांत-3 / विनोद शर्मा
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सूर्यास्त होते ही
पसर जाता है मेरे भीतर और बाहर
अंधकार
बाहर वह जिसका अपना कोर्ठ अस्तित्व नहीं
जो सिर्फ नाम है सूर्य की अनुपस्थिति का
भीतर वह
जिसका अपना कोई अस्तित्व नहीं
जो सिर्फ नाम है तुम्हारी अनुपस्थिति का
जब तक तुम्हारे प्यार की अनुपस्थिति का अंधेरा
इन दोनों अंधेरों के साथ मिलकर
मुझ पर आक्रमण नहीं करता
जीना संभव है।