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चुप्पी / विष्णुचन्द्र शर्मा
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कविता में ढलती है
यह जो
टेलीफोन की घंटी
बज रही है
उसमें
क्या संदेश है
मेरे लिए!
भाषा अभी
मूक है
स्वर अभी
बंद।
संदेश कहीं
गगन में
अटका है
टीना!
इसे सुनो!
भाषा को वाणी दो।
स्वर को
दिशाओं तक
खुलने दो।
मेरी चुप्पी को अभी
कविता में
ढलना है!