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जिजीविषा / तरुण

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हम ऊँची चिमनीदार-
फैक्ट्रियों के काले, बदबूदार, गँधाते-
मलवा बहाते-लाते
परनाले की खुश-खुश डोलती मछलियाँ हैं;
महीन मारों के यंत्रों से सुसज्जित
हमारे दाँत, आँतें और पसलियाँ हैं।
कगारे पर किसी ने डाल दिये हैं कुछ चने,
इसी पर ही तो हैं दिन कटन!

अविराम, चंचल,
अपने दाने के लिए उछल-कूद विह्वल,
टक्कर, झपट, खरोंच, उखाड़-पछाड़ हर पल।
उत्कट है बदबूदार प्रवाह में भूख, बदबूदार प्रवाह में तृषा-
हाय रे जिजीविषा!

1976