भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्तक / हरकीरत हीर

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 10 अप्रैल 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरकीरत हीर |अनुवादक= |संग्रह= }} <poem> 1...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1

है बला क्या ये मुहब्बत थे अज़ी अनजान हम
जब लड़ी उनसे निगाहें हो गए हैरान हम
हो गए ख़ामोश वो कुछ दे न पाये फैसला
ले गए दिल भी हमारा लुट गए नादान हम

2

लिए हम दीप हाथों में ,खड़े नैना झुकाये हैं
मिलन की रात है आई, तुझे दिल ये बुलाये है
कहूँ कैसे पिया मैं अब रहा तुझबिन नहीं जाता
चले आओ कि हम बैठे सजन पलकें बिछाए हैं

3

बुलाती रही मैं नहीं पास आई
मुझे ज़िन्दगी तू नहीं रास आई
ज़रा क्या हँसी से मुलाक़ात चाही
मुहब्बत की मेरी उठा लाश लाई

4

सरेआम हमने अयाँ कर दिया है
मुहब्बत को' अपनी बयाँ कर दिया हैै
कभी देख लेना वसीयत तू मेरी
तिरे नाम दिल का मकाँ कर दिया है

5

नही बचपन रहा मेरा कभी माँ आप पर भारी
बता फ़िर क्यों रही जाती हमेशा कोख़ में मारी
करूँ मैं काम सब घर के,सहूँ दुख-सुख सदा सँग भी
बता भैया से फ़िर भी क्यों नहीं तुझको लगी प्यारी

6

बड़ा बेदर्द है बालम न ख़ुद इज़हार करता है
कहूँ मैं बेहया होकर तो न स्वीकार करता है
बता दो रास्ता कोई, सुनो कुछ मशवरा दे दो,
कहे वो भी कभी हँसकर कि मुझसे प्यार करता है

7

छुपा दिल में रखा जो मीत वो पैग़ाम लिख़ डालो
सस्सी-पुन्नू कि राँझा-हीर, राधा-श्याम लिख डालो
बड़ी सूनी सुनो ! दिल की दिवारें, फ़िर सजा दो ना
तुम्हारा मैं लिखूँ, तुम भी हमारा नाम लिख डालो

8

क्या पता ये चाँद-तारे, ये नज़ारे हों न हों
झील-नदियाँ, ये शमा, हम-तुम, शिकारे हों न हों
प्यार उनसे है हमें, लो हीर ने है कह दिया
हो गए हम तो उन्हीं के, वो हमारे हों न हों

9

अग़र तुम लौट आओ तो वही ख़ुशबू बिखर जाये
खयालों में महक मीठी दुबारा फ़िर उतर जाये
कहाँ तक ढूँढ कर आती नज़र कैसे बताऊँ मैं
बना लो हीर को अपना ख़ुशी हँसकर ठहर जाये

10

आज़ उनसे है मुलाक़ात ख़ुदा ख़ैर करे
दिल हुआ जाये खुराफ़ात ख़ुदा ख़ैर करे
प्यार दिल का न झलक जाये कहीं आँखों से
बदले बदले से हैं हालात ख़ुदा ख़ैर करे

11

इक मुलाक़ात बनी हसीं रात ख़ुदा ख़ैर करे
बदले बदले से हैं हालात ख़ुदा ख़ैर करे
हर घड़ी निगाहों में इंतज़ार सा रहता है
दे जा प्यारी कोई सौगात ख़ुदा ख़ैर करे

12

वीरों की धरती भारत माँ , तुमको नमन करूँ मैं
सींचा जिन वीरों ने ख़ूँ से , उनको नमन करूं मैं
थर -थर-थर हिला दिया मिलकर अंग्रेजों को जिसने
जय-जय-जय ऐ अमर शहीदो तुमको नमन करूँ मैं

13

चाँद सूरज से फ़लक को प्रिय सजाकर देखिये
शाम सजदे में ख़ुदा के सर झुकाकर देखिये
खूबसूरत आपके दिल का मकाँ हो जायेगा
दिल जरा सा आप हमसे तो लगाकर देखिय

14

प्यार का इज़हार वो करते नहीं तो क्या हुआ
है पता हमको अग़र कहते नहीं तो क्या हुआ
पढ़ लिए अशआर उनके और ख़ुश हम हो लिये
नैन से ग़र नैन मिलते ही नही तो क्या हुआ

15

टीस सी इक दिल में है उठती बता कैसे कहूँ
इश्क़ में दिल की लुटी बस्ती बता कैसे कहूँ
इश्क़ के मौजूँ सभी अशआर मैंने लिख दिए
ज़िंदगी तन्हा नहीं कटती बता कैसे कहूँ

16

कभी जुर्रत कभी तेवर हरारत छोड़ दो अब तो
ख़ुदा से है नहीं डर जब इबादत छोड़ दो अब तो
लगाकर के तिलक माथे पे तुम करते हो नौटंकी
धरम के नाम पर करनी सियासत छोड़ दो अब तो

17


हटा लो तल्ख़ ये नजरें फ़राहत छोड़ दो अब तो
हमारे खूं पसीने की हक़ारत छोड़ दो अब तो
बहुत लूटा लुटेरे बन ,अभी तक देश को तुमने
धरम के नाम पर करनी सियासत छोड़ दो अब तो

18

इन्तिज़ार का आलम खिड़कियाँ समझती हैं
क्या सबब है जलने का बातियाँ समझती हैं
आप कैसे समझेंगे, आपने तो तोड़ा है
दर्द इस मुहब्बत का, हीरियाँ समझती हैं

19

आँखों ही' आँखों' में ज्यूँ इज़हार हो गया है
सूखा हुआ चमन फ़िर गुलज़ार हो गया है
झेले सितम हजारों हमने मुहब्बतों में
कैसे कहूँ कि तुमसे अब प्यार हो गया है

20

धूप गरमी हो या बारिश जल रहा इंसान देखो
है हमेशा ग़म बना इनका रहा महमान देखो
रोज़ फाकों में रहें ये, रोज़ तड़पे भूख से ये
हौसला फ़िर भी न टूटे, सख़्त कितनी जान देखो

21

आशिकी में कुछ नशा दमदार होना लाज़िमी है
तीर नज़रों का जिगर के पार होना लाज़िमी है
इस तरह ख़ामोश रहकर प्यार कैसे तुम करोगे
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना लाज़िमी है

22

दिल में' कैसी लगी ग़मी सी है
ज्यूँ ये मुरझा रही कली सी है
आ कभी तो गले लगा मुझको
ज़िंदगी क्यों कटी-कटी सी है