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छेरिंग दोरजे / कुमार कृष्ण

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आप यकीन मानिए-
छेरिंग दोरजे के लिए
सलमा सुलतान के सन्देशों का
कोई महत्व नहीं

वह पहाड़ों की गन्ध में जीता
ऐसा शख़्स है
जिसके लिए
किसी भेड़ का देर तक मिमियाना
खूँखार जानवरों के हमले की
पूर्व सूचना है।

बड़े सँभालकर रखे हैं उसने
उनसे बचने के लिए
अपने पुरखों के
जंग लगे पुश्तैनी औजार
इनके रहस्यात्मक किस्से सुनाकर
अपने पोतों को
नींद के हवाले करता है
रात उतरने पर
छेरिंग दोरजे।
यह वह वक़्त है
जब दुनिया भर के किस्सों को लेकर
सलमा सुलतान आती है
मेरा बच्चा तब मुझसे
उसके जूड़े में लगे हुए
फूल का रंग पूछता है
खबरों में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं
वह आदमी की पहचान
गन्ध से नहीं रंग से करता है।

आप यकीन मानिए-
छेरिंग दोरजे
पेड़ों की बिरादरी में काँपने वाला
एक ऐसा दरख़्त है
जिसकी अपनी कोई गन्ध नहीं
वह जंगल की गन्ध में
ऐसे दब गई है
जैसे धुएँ की गिरफ़्त में
रोटी का स्वाद ।

वैसे उस पेड़ के बारे में
कुछ भी बात करना
आसान काम नहीं
फिर भी लोग अरसे से
उसकी हँसी को
शब्दों के चेहरों को सौंपते आए हैं
जिसमें न जंगल बोलता है
न पेड़ की गन्ध
आप सोच रहे होंगे
मैं प्रकृति-चित्रण कर रहा हूँ
नहीं, मैं आपको
उस शख़्स के बारे में बताना चाहता हूँ
पहाड़ पर खड़े
उस मजबूत पेड़ के बारे में
जो हर मौसम की मार खाता हुआ
ज़मीन को जंगल में बदलने के लिए
जिन्दा है।
पहाड़ों में घिरी
जिस ज़मीन पर रहता है
छेरिंग दोरजे
उसका कोई नाम नहीं
ज़मीन का वह हिस्सा
किसी गाँव में नहीं बदला गया
जनगणना के आँकड़ों में।

ऊन के धागों को
गर्म कपड़ों में बदलने के लिए
जाना जाता है छेरिंग दोरजे
इस बेनाम ज़मीन पर।
सुबह से शाम तक
ऊन को बदशक्ल करके
नमक खरीदता है छेरिंग दोरजे
बना डाली है उसने आदत
कड़ाके की सर्दी में
ऊनी कपड़ों के बिना रहना।

नहीं सीख पाया वह आज तक
नमक के बिना रोटी निगलना
छेरिंग दोरजे की बूढ़ी पत्नी
एकमात्र बेटा-मारे गये
पिछले साल की बीमारी में
इस साल उड़ा ले गया
गीली लकड़ियों का धुआँ
एक आँख की रोशनी
छेरिंग दोरजे की पुत्रवधू कहती है-
चार दर्जन पहाड़ों को लाँघकर
कोई शहर है
जहाँ ठीक होती है आँखों की रोशनी
उसने नहीं देखा कभी शहर
सुना है
बहुत-से खूबसूरत घरों का नाम
शहर है
जहाँ मवेशियों को भी पिलायी जाती है
जिन्दा रहने की दवा
यह बात सुनी है उसने
जंगल के पार टाशी के मुँह से।

आसमान में उड़ते
किसी जहाज की आवाज़
उसके लिए शहरी गुर्राहट है
जिसके भय से बच्चे
घर से बाहर निकलकर
रोना शुरू करते हैं
जब-जब सुनती गुर्राहट डोलमा
तब-तब याद आती एक बात-
तुम्हारे बाप ने वादा किया था
वह मरने से पहले एक बार
ले जायेगा शहर की भागती हुई ज़मीन तक

एक दिन अचानक
बादल फटा उस घाटी में

यह खबर भी सुनी लोगों ने
सलमा सुलतान के मुँह से
पुत्रवधू और पोतों समेत
घायल हो गया छेरिंग दोरजे
टाशी का गाँव पूरी तरह लुढ़क आया
छेरिंग दोरजे की बेनाम ज़मीन पर।
इस हादसे के बाद
अधमरे लोग लाये गये
आसमान के रास्ते से
शहरी इमारतों तक
घूमने लगे छेरिंग दोरजे के जहन में
चार दर्जन पहाड़
आठ दर्जन भेड़ों के अक्स।
ज़मीन से बहुत ऊपर थी
छेरिंग दोरजे की घायल पीठ
पहली बार महसूस किया
घायल दोरजे ने
लोहे की चारपाई का सुख ।

छत से लटकी रोशनी को देखकर
झन्ना गया पूरा शरीर
सुन्न हो गया पूरा जहन
आसपास की चीज़ों को देखकर
भूल गया वह
भूखी भेड़ों के अक्स
उसके मुँह से निकली

बस एक लम्बी चीख
रेंगती रही देर तक पूरी इमारत में
वह जानता था केवल चीखना
चीssख ना
नहीं जानता था
बेनाम ज़मीन का बाशिन्दा
वर्णमाला के अक्षरों से जुबान सुखाना।

जितने लोग लाये गये शहरी इमारतों में
रफ्ता-रफ्ता हो गये पागल
गूँगे-बहरे-घोषित किया विशेषज्ञों ने
पर असल बात तो यह थी कि वे सब
नहीं थे पागल
नहीं थे गूँगे-बहरे
उनके पास थे शहरी भाषा के बिना
आदमी और औरतों के पूरे शरीर
किया जा सकता था जिनको इस्तेमाल
ठेले खींचने के लिए
या बनायी जा सकती थीं ब्लू फ़िल्में
उनके लिए
छत ले लटकी रोशनी
सूरज की आँख थी
जिसे चूमना चाहते थे वे
पूरी ताकत के साथ
ताकि लौट सकें
चार दर्जन पहाड़ियों को लाँघकर
शहर की पागल ज़मीन से दूर
भेड़ों के रेवड़ में।