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जीवित संदेशे / महेश सन्तोषी
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जो स्पर्शों में डूबा था, वह भी प्यार था।
जो स्पर्शों से अछूता था, वह भी प्यार था।
स्पर्शों से या बिना स्पर्शों से,
तन में या मन में,
प्यार को एक आकाश तो दिया हमने।
कभी तुम्हें छुए, कभी बिना छुए,
रात बीत गयी जागते हुए,
सांझ से ही बने कभी बांहों के पुल,
डूबे रहे रास में मन के गोकुल।
मना किया रातों ने जाने को,
दिन ऊगे अलसाये, अनमने
प्यार को आकाश तो दिया हमने।
नहीं किये हमने अनदेखे
ओठों के खुले, जीवित संदेशे,
प्राणों की भाषा के अनबूझे लेखे,
वो ढाई आखर जो किसी ने न देखे।
एक सत्य बांहों में
भरा हुआ जी लें हम,
कल का क्या
फिर से हम जन्मे, न जन्मे
प्यार को आकाश तो दिया हमने।