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बीमारियाँ / महेश सन्तोषी

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बीमारियाँ अब छोटी-बड़ी हुण्डियाँ बन गयी हैं,
और ज़िन्दगियाँ, बीमारियों में बदल गयी हैं!

मैं बिना उपचार के हूँ
क्योंकि
एक बीमार सभ्यता, समाज और संस्कृति की
बहुत-सी बीमारियाँ मेरे साथ जुड़ गयी हैं।
और उपचार के लिए लम्बी-लम्बी देनदारियों ने
उपचार की जवाबदारियों को सरेआम निगल लिया है!

मैं बिना उपचार के हूँ
क्योंकि अब तो
जन्म से ही बीमारी बेची और खरीदी जा रही है
बिना किसी खर्चे के अब!