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यह कोई / अनुभूति गुप्ता

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यह कोई मामूली-सा
शहर नहीं हैं
बहुत-सी समस्याओं से
घिरा पड़ा है
इंसानी मन दिखावे
और बनावटीपन से भरा पड़ा है।

यहाँ की इमारतें
सभी की सभी झूठी हैं
यहाँ की शक्लें
एक दूसरे से
कुछ से ज़्यादा ही रूठी हैं
सभी चैराहे नाराज तंग हैं,
गली-गली में छिड़ी जंग हैं।

दीखतीं हैं यहाँ...
डूबी हुई कश्तियाँ
भूली हुई हस्तियाँ।
जीते-जी
बुझी हुई नजरें
और
मरने के बाद
खिली हुई कब्रें।