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यादें / गिरिजा अरोड़ा

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आवारा बादल सी
गलियों में मन के फिरती
आ जाती हैं यादें

चलते हुए डगर में
चुपके से पकड़े
दामन को जैसे कांटे

कुछ हाथ लग जाए
बरसों से बंद ट्रंक
आज खोलने की साधे

पुरानी किसी गुफा में
रोशनी कर रही हो
अंधेरे से कोई वादे

बचपन के बाग में
भंवरे कर रहे हो
तितली से फूल सांझे

ऊँची पहाड़ी वाले
मंदिर में मन्नतों के
लटके हों जैसे धागे

दुख या खुशी मेंकभी
बरसे आंखो से
या गरजन सी हो बातें

आवारा बादल सी
गलियों में मन के फिरती
आ जाती हैं यादें