भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साहस / अमर सिंह रमण
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:33, 24 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमर सिंह रमण |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खड़े शान से रहना अच्छा घायल शीश उठाए,
उचित नहीं है लिए हिम्मत, रखना शीश झुकाए।
यदि स्वतन्त्रता से अपनी है हमें तनिक भी प्यार,
तो खुशी से स्वीकार करें चाहे तोहमत लगे हजार।
देश प्रेम के साथ स्वार्थ की बात नहीं चल सकती,
सूर्य चमकता रहे अगर तो धूप नहीं ढल सकती।
बुरे भले सब इनसानों की मना रहे हैं खैर,
हमें बुराई से नफरत है नहीं बुरे से बैर।
करते प्यार देश से हैं हम, और देश के जन से,
छल कपट को दूर हटाकर सेवा करेंगे तन-धन से।
ना चाहिए हमें दुनिया की दौलत और ऊँचा नाम,
अपने होंठों को खिलने दो, कहकर जय सूनीनाम।