भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिजई / आशा राजकुमार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:55, 24 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आशा राजकुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हर साल हमार फरयारी में लावत रहा बिजई
गरीब माई के लड़का
लाल लाल फूल बिनल रुमाल हमार खात
मुड़ी हमार रहा छन्ना
भूल जात रही हमके ओही दिन बिदाई भी फरचारी है
चहता में लेथरान लगत रही हम लोग जइसे मेघा
लड़त रही हम लोग एक मछरी के पीछे
उ दिन के गतवान रहा बहुत जीव
झौंकल कुकुही कड़हिया मंे कूदे
आजा के खटिया पर सूतत रही हम दूनू
बात करत रही सैतान और भगवान के
आजी कमाड़ी लगे खड़ा होके कभी दोहा गावे
कभी हम लोग के माई बाप के गरियावे
नवरंगी चोराई हम, नाम लगे बिजई के
आजी आजा और बिजई सब भइल भगवान के पियारा
फल के पेड़ झुराइ गइल।