भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुढ़ापा / सुशीला सुक्खु

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:10, 26 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशीला सुक्खु |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उम्र का अजीब पड़ाव
जिसमें
एकाकी जीवन असम्भव है
सहानुभूति, सहारा की हमदर्दी और
सहारे की
अधिक जरूरत
जो इस अवस्था के
अँधेरों से घिरे जीवन में
उजली किरण बन
जीवन के अन्तिम दिनों को
सुखद जगमगाहट देती
वृद्धावस्था वरदान है
अभिशाप नहीं।