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इच्छा / नवीन ठाकुर 'संधि'
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सैंया आवोॅ नी,
हमरा हिन्नें ताकोॅ नी।
बितलोॅ जाय छै सौन,
कहाँ बैठलोॅ छोॅ मौन।
सब्भै हरा भरा चुड़ी पीन्है छै,
हमरोॅ आँखी रात दिन गिनै छै
थोड़ोॅ सा दया देखावोॅ नी।
सैंया आवोॅ नी।
मोॅन नै मानैॅ छै पागल,
जैन्होॅ सरंगोॅ में उमड़ै छै बादल।
देखी केॅ लामी कारोॅ केश,
बिन्दी लाली सें सजलोॅ वेश।
दौड़ी केॅ ‘‘संधि’’ अगिया बुझावोॅ नी
सैंया आवोॅ नी।