भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यास / नवीन ठाकुर 'संधि'
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:04, 27 मई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन ठाकुर 'संधि' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हम्मेॅ गुणगुनाय छीं फूलोॅ पर
तोंहें इठलाय छोॅ सूरोॅ पर
बुझाय देॅ प्यास लगायकेॅ छीं आस
फटकारै छोॅ कैन्हेॅ तोरोॅ दिल में करलेॅ छीं वास
तोहोॅ देल्होॅ फटकार
हमरोॅ बनलै अमरधार
सब्भे दिन पीबै
जिनगी भरी जीबै
आपनौह पीबै
दोसरौॅ केॅ पियैबै
इतराबै छोॅ यहेॅ शरीरोॅ पर।
तोहें देल्होॅ हमरा सराप
हमरा लेली बनलै आशीर्वाद अपनैह आप
‘‘संधि’’ मरै आदमी गरूरोॅ पर।
हम्मेॅ गुणगुनाय छीं फूलोॅ पर।।