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पहचान / ब्रज श्रीवास्तव

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भट्टी जैसे हुये रास्ते
लपट भी है क्या उसी वास्ते.
सूरज का मौसम है भाई.
आगों ने भी आग लगाई

वह ऐसे में
श्रम करने को
मजबूर है
वही मजदूर है.

हमदर्दी के दिन तो आते
पिन के जैसे उसे चुभाते
फुसला कर करते हैं शोषण.
साजिश भरा है दोषारोपण.

जिससे उसका मालिक
रहा सदा से क्रूर है.
हां, वही मजदूर है

जिसके बिन, न बिजली, नल
जिसके बिन, न सड़क, ओ घर
खुद से ही पहचान नहीं है
जो अब भी खुद से दूर है.
हां वही मजदूर है