भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मजदूर माँ / मुकेश नेमा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:48, 21 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश नेमा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
धधकती दुपहरी
खडी सतर
तरबतर पसीने से
लिये पनीली आँखें
निहारती
माँ मजदूरन
रेंगती सड़क पर
गोद के लिये
आ प्रस्तुत
बिटिया को!
बाधा है बड़ी
कड़ी धूप और
माँ के आँचल के बीच
चाहिये अनुमति
निष्ठुर इँटों से
लदी है जो सर पर
जानता हूँ मैं
जानती है
वह विवश माँ भी
रह जाना है अनसुनी
यह अनकही याचना!
बिटिया को
होना होगा बडा
बिना चढ़े गोद
अनुचर होगी वह भी
धूप और ईटों की
अगली पीढ़ी की!