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बेचैनी / राजेश शर्मा ‘बेक़दरा’

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न शब्द कागज़ पर,
न दिल शरीर में,
उड़ रहे हैं दोनों,
बेठिकाना...

न कागज पर कविता,
न दिल में चैन,
बेसबब उड़ान भरते,
दो परिंदे,
पर कटवाने को बैचेन...