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शनासाई / सुदेश कुमार मेहर
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बहाने ढूंढता हूँ सोचता हूँ अक्सर,
किसी सूरत तो उससे भी शनासाई हो
खयालों के क़फ़स में यादों की जंजीरें,
उसी की बस उसी की हर सूं तस्वीरें,
किसी भी तौर मुझमें कम न तन्हाई हो
न जाने वो मिरे बारे में क्या सोचेगी,
यही सब सोचकर मैं रात भर जागा हूँ
बना डालूँ मैं खुद को भी तमाशा लेकिन,
यही इक शर्त है वो भी तमाशाई हो
बहाने ढूंढता हूँ सोचता हूँ अक्सर,
किसी सूरत तो उससे भी शनासाई हो