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सृजन / मनोज जैन 'मधुर'

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करना होगा
सृजन वंधुवर
हमें लीक से
हटके।
छंदों में हो
आग समय की
थोडा सा हो पानी।
हंसती दुनिया
संवेदन की
अपनी बोली बानी।
कथ्य आँख में
आलोचक की
रह रह करके
खटके।
दिखा आइना
जो सत्ता का
पारा नीचा कर दें।
जन मन गण
के पावन दिल में
जो समरसता भर दें।
शोषक शोषण का
विरोध जो
करें निरन्तर
डटके।
जीने की जो
कला सिखाये
बोध समय का जानें।
मान सरोवर
के हंसों -सा
नीर- क्षीर पहिचानें।
अन्धकार को
रौशन कर दे
बिम्ब रचें कुछ
टटके।