भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक ख़याल / शुभा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:41, 11 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह टीला वहीं होगा
झड़बेरियाँ उसपर चढ़ जमने की कोशिश में होंगी
चींटियाँ अपने अण्डे लिए बिलों की ओर जा रही होंगी

हरा टिड्डा भी मुट्ठी भर घास पर बैठा होगा कुछ सोचता हुआ

आसमान में पाँव ठहराकर उड़ती हुई चील दोपहर को और सफ़ेद बना रही होगी
कीकर के पेड़ों से ज़रा आगे रुकी खड़ी होगी उनकी परछाँई

कव्वे प्यासे बैठे होंगे और भी सभी होंगे वहाँ
ऐसे उठँग पत्थर पर जैसे कोई सभा कर रहे हों
हवा आराम कर रही होगी शीशम की पत्तियों में छिपी

हो सकता है ये सब मेरी स्मृति में ही बचा हो
यह भी हो सकता है मेरी स्मृति न रहे
और ये सब ऐसे ही बने रहें।