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अगर रखती इरादों में हो गहराई, बता देना / आनंद खत्री

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मैं तैरा हूँ समुन्दर भी, न मुझकोतुम डुबा देना
अगर रखती इरादों में हो गहराई, बता देना

तिरे लब का सितमखाना, है खुशबू की करीबी पे
पय-ए-इक्सीर सी हसरत, रिवायत ये निभा देना

तिरे ज़ुल्फ़ों का दीवाना, हूँ काजल से बहुत ज़ख़्मी
हो बहकाना ज़रूरी तो मुझे कुछ तो, पिला देना

यूँ मज़हब सा निभाऊँगा, मैं रिश्तों की खुमारी को
मैं बुतखाना बना दूंगा, ज़रा तुम मुस्कुरा देना

रहा उलझा हुआ अकसर, मैं हसरत की निदामत से
ज़मी सर सब्ज़ है ख्वाबोँ की, दो ख्वाइश दबा देना