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स्वप्न / पंकज सुबीर
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स्वप्न
अकुला रहा है
सोख लेना चाहता है
उस थोड़ी सी
नमी को
जो रह गई है बाक़ी
कहीं अंदर
और
उगना चाह रहा है
किसी नवांकुर की तरह
स्वप्न
आज फिर
किसी बड़ी
ग़लतफ़हमी
में है...