भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम द्रौपदी / सरोज सिंह

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:38, 23 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhojpu...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हस्तिनापुर के पतोह हम द्रौपदी आज फेर जन्मल बानी
भारत वर्ष के उ बेटी जेकर एगो प्रश्न
समूचा नारी जाति खातिर आज ले अनुतरित बा
कि मेहरारू के दावं पर लगावे के अधिकार के दिहलस मरद के?
हजार बरिस से बिरोध करेवाली अइसन मेहरारू का देखले बानी रउआ सभे?
ओ दिन धर्मराज युधिष्टिर भारत वर्ष के डिगा देवे वाला कुप्रस्ताव पारित कइलन
हम कृष्णवर्णा, सुगंधा, बिदुसी पांचाली के दाँव पर लगावsतानी
 हंह प्राण दाँव पर लगावे वाला आपन मेहरी के दाँव पर लगा देहलस
इ पृथ्वी तब्बो ना भंसल काहेसे की
भारत वर्ष के इतिहास में बाकी रहल एसे भी बड़ बिपत
सभा-घर क्षुब्द भइल, बड़-बूढ़वार लो कोसsलस
भीष्म के काठ मार देहलस रउआ सभ के पता बा?
बिदुर अऊर गुरु द्रोण दुनु हाथ से आपन मुह ढपले मोहग्रस्त बइठल रह गईल लो
गुरुदेव!! राउर बाण का खाली चिरई के आँख भेदल जानत रहल?
उ आँख के ना भेद पवलस जे असहाय स्त्री के मर्यादा भेदत रहल?
मरुआईल गुरु द्रोण कुछ बोल न पवलन
आपन खुसी ढांपत-तोपत धृतराष्ट्र बोल उठलन
के के जीतल? सभागार में सन्नाटा खीचा गईल
खाली शकुनी का पासा बोल उठल
जीत गइनीजा हमनिक जीत गइनीजा
 अगराईल कर्ण के अट्टहास सगरो गूँज उठल
अउर दुर्योधन बोल उठलं प्रतिकामी दासी द्रौपदी के सभाघर में ले आवs
 हमार पहिलका स्वामी माथा नीचे गडले रह गईलन
 दोसरका के अन्हारीयाईल रीस के सांत करावत रहलन हमार तीसकरा स्वामी
फाल्गुन तुहूँ एतना क्लीव रहलs हाय !!
 प्रतिकामी से हम प्रश्न पठsवनी प्रतिकामी तनी पता कर के आवs
कि ऊ अपना के भा हमरा के कवन बाजी के पहिले हरलन ?
मगर कवनो जवाब ना आईल
अउर तब दुशासन हमार केस बलात खीचत सभागर में ले आइल
उहे मेघवर्ण केस जेमे फाल्गुनतू आपन मुह ढक कर सूतत रहलs
 मधिम नीन में भीम उहे केस राशि से खेलत रहतन
इहे केस के सुगंध से स्नायु शांत होत रहल राजा युधिष्टिर के
नकुल सह्देव इहे केस के रहस्य में अपने माइ के शोक भूला जात रहन
दुशासन उहे केश के खींचत-खींचत ले आईल सभागार तक
अउर एक वस्त्र रजस्वला के ठाड़ कर दिहलस सब के सामने
हे मरद तहन्लोग एक हाथ से हम्निका तोपे-ढांके खातिर भीतर ढकेलेलs
 अउर दोसरका हाथ से बाहर निकाल के बेइज्जत करेलs लो ?
बिधि-बिधान तहनिये लोग बनावे ल लोग
अउर समय आये पर लूल हो जालs लोग ?
हाय मरद-मरद के लड़ाई में नोकसान मेहरारू के
साड़ी,साड़ी अउर साड़ी रेशम के सात रंग में ढका गईल कुरु सभा
 हे दुशासन सुन शतदेवता भी तोरा के बचा न पईहें
महायुद्ध में पांडव प्रतिशोध लिहें इ बेहयाई के
हम इ गूंग सभा के समसान में
जरत नारी के मान के चिता के उ दंवक हई
जे सबकुछ भष्म कर दी,सबकुछ नास कर दी
धिक्कार कुरु सभा धिक्कार हमार स्वामी लोग
रउआ सभे चुप-चाप देखत रह गइनी अधर्म के जीत ?
मगर हम आपन लाज खुद रखनी गांठ खुलल ना
एक बार केहू हमार मुह देख के कहले रहल
थम जाए वाला इतिहास तोहार सुन्दराइ के आगा
सब मेहरारू बनरी लागेली सन
के कहले रहल ??इ कहले रहल जयद्रथ बन में हमार रास्ता रोक के
 रूप देखते ही हे मरद काहें मुट्ठी में कर लिहल चाहेला मेहरारू के
अउर न मिलला प ओही के निर्बस्त्र कर के मुह करिया कर देलs लो ?
द्रौपती बहुपति बेश्या जदि हम बेश्या
तब त तुहूँ मरद-वैश्या महा मति
सइय्या पर तहरो भी त बहु पत्नी विविध स्त्रिलोक
जवन अधिकार तहरा खातिर बा उहे अधिकार हमनी खातिर भी होख
जवन ग्रन्थ तुलोग रचेलs उ ग्रन्थ हमनीका पलट भी सकेनी जा
सुनs हे कर्ण सुनs सभाजन
तहं लोग के आगा हम एगो टेढ़ सवाल हई
जदि हम सवाल करेनी त तु लोग भय खाएला
भीष्मपितामह हमार तू मुह लुकावेलs ?
धृतराष्ट्र बोलीं का हम कलंक के जोग बानी आज ?
सभाजन भी चीत्कार कर उठल अशुभ सब शब्द महाराज
 दुर्योधन आपन जांघ देखइलन निहित रहल जेमे नितांत अपमान
मौन युधिष्टिर बुझ न पइलन महाप्राणएतना सभ कुछ होखला के बाद
धृतराष्ट्र सिंघासन से नीचे उतर के बोलsलन
कृष्णाsss तहारा का बर चाहीं बोलs
हम दू गो बर माँगनी पहिला
हे पिताश्री जदि रउआ ख़ुश बानी त ई बर दीं कि
सर्वधर्मचारी युधिष्टिर दास मुक्त होखस
दोसरका बर में दास मुक्त होखस वीरश्रेष्ट भीम अर्जुन नकुल सहदेव
युधिष्टिर के धरम अउर अर्जुन के गांडीव के प्रति आपन संदेह लूका के
हम इ बर हाथ जोड़कर के दांत भीच के मंगनी
विश्वन्दित स्वामी लो के प्रति आपन गुस्सा अउर संदेह कईसे उजागर करतीं?
 सभासदों के आगा हास्यास्पद हो जाईत लो ?
धृतराष्ट्र तिसरका बर मांगे के अनुरोध कइलन
 हम ना लेनी कारन "हे सभाजन लोभ से धर्म के नास होला
वैश्य १ बर कश्त्रिय २ बर, राजा 3 बर अउर ब्राह्मण एक शत बर ले सकेला
रउवा लोग के महाग्रंथ में इहे बिधान बा
जवन राज्यपाठ युधिष्टिर अपना दोस से हारल बाडन
 उ तीसरका बर से नईखी लिहल चाहत
राज्य उद्धार करिहें हमार बल पौरुष स्वामीगन
 काहेसे कि रउवा लोग के महाग्रंथ में राज्य विस्तार ही पौरुषता के शर्त हवे"
हमार ई आश्चर्य सिद्धांत से सभा भौउचक हो गईल
खाली कर्ण कहलन
"द्रौपदी दुःख के सागर में डूबत पांडव के नावं नियर उबार लेहली
"एसे पहिले कवनो मेहरारू ए तरह के काम कइले होखस हम नइखे सुनले "
हमार पांचो पति माथा नीचे कइले चुप चाप बइठल सुनत रहलं
एकरे अलावा हम अउर कुछ कर भी का सकत रहनी
बहुत समय बाद हमाँर रीस विस्फारित भइल
जब बनवास के समय कृष्ण हमरा आगा उपस्थित भइलन
"कृष्ण तू आइल बाड़s हो जदि सुनतs हमर बिपद
हमार केहू युधिष्टिर ना केहू भीमाअर्जुन नइखे
हमार कवनो पुरुष नइखे,पुत्र नइखे पिता अउर भाई
नइखे, हमार कवनो समाज नइखे, गोड के नीचे के माटी तक हमार नइखे,
हे मधुसुदन तुहू न ओ दिन तुहूँ न रहलs जब सभ केहू हमरा के अधोवस्त्र में देखले रहे
आपना कलूस हाथ से छुअले रहल !
उ सब आजो जीवित पृथ्वी पर घूम रहल बाड़ेसन
अउर हमार स्वमिलोग शांति प्रस्ताव राखल चाहsता
धिक्कार बा ए तरह हमरा जीवित रहला प कृष्ण "
ओकरा बाद हमरा के मुह ढांक के रोअत देख के कृष्ण बोलsलन
भामिनी तू राज महिषी होखबू, तू जेकरा जेकरा प रिसियाईल बाडू
सब ध्वंस होइहेसन,अर्जुन के गांडीव धरासायी करी
जदि आकाश पतीत होजाई हिमालय जीर्ण हो पृथ्वी खंड खंड हो जाइ,
सागर शुष्क हो जाइ तथापि हमार कहल व्यर्थ ना जाई "
तब हमार अपमान के घाव में पहिला मलहम लागल रहल!
हमार मरुभूमि पहिला बेर आंस सोखले रहल कृष्ण तू हमार पहिला बंधू बनल रहलs
इ भारत भूमि तहरा के प्रणाम कइले रहल!!!