भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कंधे / अनुपमा तिवाड़ी
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:16, 11 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुपमा तिवाड़ी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
यात्रा करते समय झुक जाते हैं
कुछ सिर, पड़ौसी के कंधे पर
तो झटक देते हैं, कई बार वो,
सिर
जो नहीं जानते
कि नींद की खुमारी क्या होती है \
सहारा देने वालों के सामने बैठी
कुछ आँखें कहती हैं
झिंझोड़ दो इस सिर को
पर, कुछ कंधे फिर भी ढिटाई से देते है
झुके सिर को सहारा
जो जानते हैं
असली नींद-नकली नींद
पर, शायद वो नहीं जानते
कि अब कंधे कम होते जा रहे हैं
कि जिन पर सिर रखकर कोई सो सके
सिर रखकर रो सके
और पहुँचा सके किसी को
अंतिम यात्रा तक