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नज़र नवाज़ बहारों के गीत गायेंगे / साग़र पालमपुरी

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नज़र नवाज़ बहारों के गीत गायेंगे

सुरूर—ओ—कैफ़ की दुनिया नई बसायेंगे


है ऐतमाद हमें अपने ज़ोर—ए—बाज़ू पर

कभी किसी का न अहसान हम उठायेंगे


मय—ए—वफ़ा का पियाला हर एक गुल हो जहाँ

वतन के बाग़ को वो मयकदा बनायेंगे


रहे हयात की तारीकियाँ मिटाने को

क़दम—क़दम पे उजालों के गीत गायेंगे


करेंगे राह—ए—महब्बत में जान तक क़ुर्बाँ

वफ़ा के फूल रग—ए—संग में खिलायेंगे


बुझा सकें न जिसे हादिसात के तूफ़ाँ

रह—ए—हयात में वो शमअ हम जलायेंगे


पड़ेगी माँद अगर शमअ—ए—आरज़ू—ए—वफ़ा

तो आसमान से तारे भी तोड़ लायेंगे


हमारे दम से है ‘साग़र’! ये रौनक़—ए—महफ़िल

न हम हुए तो ये नग़में कहाँ से आयेंगे ?