भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप को सर पर लिये चलता रहा / अनिरुद्ध सिन्हा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:59, 13 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध सिन्हा |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
धूप को सर पर लिये चलता रहा
मैं ज़मीं के साथ ही जलता रहा
नफ़रतों के जहर पीकर दोस्तो
प्यार के साँचे में मैं ढलता रहा
टूटकर इक दिन बिखर जाऊँगा मैं
मेरे अन्दर खौफ़ ये पलता रहा
लौट आया आसमां को छूके मैं
जलनेवाला उम्र भर जलता रहा
लोग अपनी मंज़िलों को हो लिये
वो हमेशा हाथ ही मलता रहा