भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थारौ आंवणौ / मीठेश निर्मोही

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:04, 1 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीठेश निर्मोही |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुहारियां घूमर घाल
बुहारण लागी
आंगणौ।

झीणी ढाळ
ओळू उगेर
घट्टी मांडदी
म्हैं।

पण हिचकी रै हिबोळां
चेतौ बिसरगी।

रोटी माथै पड़तां ई
रोटी
हंसण लागौ तवौ।

मेड़ी रै छाजै
मीठौ बोलण लागौ
काग
वाह रे!
म्हारा धिन भाग!