भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हवन कुण्ड / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:09, 16 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम किसको
नकार रहे? क्या मुझको?
मेरा यदि कहीं है कुछ,
तो मुझको दिखलाओ
तुम नकार रहे हो, भाई,
गी को, इडा को
इराको, इला को
क्योंकि
वे कविता में आतीं,
किन्तु आती हैं
जिस पल, उससे पहले
विगलित हो जाता
मेरा ‘मैं’ सारा
रह जाता
हवन कुण्ड का
अग्नि जलता