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प्यार / कौशल किशोर

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उसने पूछा-
कैसा होता है प्यार?

क्या आकाश से ऊँचा
पताल से गहरा
शीशे-सा परदर्शी
जल।कल-सा साफ व स्वच्छ
क्या ऐसा होता है प्यार?

मैंने कहा-
पूष की रात में
खेत अगोरते मचान पर बैठे
गुदड़ी में लिपटे
सिकुड़े सिमटे
बालक की भुचभुचाई आँखों में
भोर का इन्तजार
कुछ कुछ ऐसा ही होता है प्यार

बडी.बड़ी नदियाँ
उसके चौड़े।चौड़े पाट
ऊँचे।ऊँचे पठार
पेड़ पौधे बाग फूल पŸाी
देश धरती आसमान
इस फैलाव के साथ
अपने को जोड़ता
खोलता फैलाता
यह प्यार
हमारे जैसे आदमी
की आंखों में मोदमयी भविष्य की
सतरंगी उड़ान है

मत बांधो
चन्द रिश्तों का नाम नहीं है
हर बन्धन में कसमसाता
छटपटाता
मुक्ति की तमन्ना लिए
बेखौफ आजादी की नव।नव तरंग
जीवन का सार
प्यार...प्यार...प्यार...