भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आसानियाँ और मुश्किलें / मनमोहन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:44, 5 अक्टूबर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न कहना आसान है
और कहना मुश्किल
लेकिन कहते चले जाना
न कहने जैसा है
और काफ़ी आसान है

इसी तरह न रहना आसान है
और रहना मुश्किल

लेकिन रहते चले जाना
न रहने जैसा है
और काफ़ी आसान है

चाहें तो सहने के बारे में भी
ऐसा ही कुछ कहा जा सकता है