भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ूबसूरत मोड़ / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:11, 23 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ूबसूरत मोड़ पर
इनसान अकेला होता है
पिछले सारे रास्ते
उनके सारे क़िस्से
ख़त्म हो चुके होते हैं
सामने का रास्ता
कुछ कहता नहीं

ख़ूबसूरत मोड़ पर
संगी-साथी छूट जाते हैं
वे, वे नहीं रह जाते
मैं, मैं नहीं रह जाता

बेहद ख़तरनाक़ है
ख़ूबसूरत मोड़।