भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आगरो / रामकृष्ण

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 3 मार्च 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृष्ण |अनुवादक= |संग्रह=संझा-व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन
सपना निअन उरेहल इंजोर
झकझकाएल-तऽ
मन के सिरा में
गीत के कनी फूटल।
हम का जानी -
ओकर आखर के बुनाई कढ़ाइ,
बाकी, फूल पर बइठल
मातल भउरवा से पुछली -
कि भाई रे!
तूँ जानऽ हें-ओकर अरथ
ऊ चुप्प...
फिन पुछली -
दबारे... तिबारे
तब, तनीसुन गुनगुनाएल
आउ उड़गेल... फुरदपर।

हम ऊ फूल से पुछली -
तूँ जानऽ हऽ-ओकर अरथ?
ऊ हो नेव गेल, लजाके
देखते भरमें (सभेफूल फुलवारी के)

करे लगलन कानाफूसी
बाकी, जस के तस रहगेल
हमर सबाल।
गोर/दप-दप उज्जर बगुला
जे, अकास खिलल जाइत हल
रोक के कहली ओकरो से
अपन मन के दरद,
ओहू लहस के बढ़ गेल, आगे।

झूमित फेड़ के
लरचित डहुऽगी से कहली
एँ गोइ,
इ झुमौनी के गुर
हमरो देवऽ तनीसुन -
माँगली, लजएले -
एगो कनकनी
एगो सुरता
एगो ललछौंही लाज
एगो बतौनी बतकही
एगो रोआँ के सिहरनी।
कनहूँ/केउ में तो
लौके/कुनमुनाए
ऊ हिरदाके/बजल सितार के
झिनझिनी।