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लालसा / महेन्द्र भटनागर
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हम खाते नहीं,
केवल पेट भरते हैं,
चरते हैं।
- (नियति है यह,
- हमारी।)
- (नियति है यह,
खाते
तुम हो।
सृष्टि के
सर्वोत्तम पदार्थ
- (हमारे लिए गतार्थ !)
- (हमारे लिए गतार्थ !)
विधाता के
सकल वरदान
संचित कर लिए
तुमने अपने लिए,
वंचित कर हमें।
- (प्रकृति है यह,
- तुम्हारी।)
- (प्रकृति है यह,
न होगा बाँस
न बजेगी बाँसुरी
- न होगा दाम
- न परसेगी
- माँ, सुस्वादु री !
- न होगा दाम
मात्रा देखेंगे
या
कथाओं में सुनेंगे,
- मूक मजबूर —
- मूक मजबूर —
(बादाम-काजू-पिश्ते,
अंगूर,
खीर-मोहन, रस-गुल्ले-रबड़ी।
हम से दूर !)