भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नंगरिहा / अनूप रंजन पांडेय
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:09, 13 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप रंजन पांडेय |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बड़े फ़जर ले चले नंगरिहा, जोते बर हे खेत।
बेरा के ठढियावत संगी, मुसुवा कूड़े पेट॥
मुसुवा कुदय पेट, बइठ बंभरी के छईहा।
टूरी बासी लानय, खिंचय सरपट सईया॥
कह पांडे कविराय, नगरिहा, धनतोर जांगर
जब देखौं तो फटहा निगौटी, खांध म नागर